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चुनाव हारने पर कर दी आत्महत्या - Harendra prasad

चुनाव हारने पर कर दी आत्महत्या

त्रिस्तरीय चुनाव में आजमाई क़िस्मत हार मिलने पर कर दी ज़िन्दगी ख़त्म।

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पिथौरागढ़ -: उत्तराखण्ड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का शोर भले ही थम चुका हों परन्तु राज्य पिथौरागढ़ जिले से आ रही एक दुखद खबर ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया के पीछे छिपी सामाजिक और मानसिक चुनौतियों को उजागर कर दिया है। जहां बीडीसी का चुनाव हारने के बाद एक प्रत्याशी ने आत्मघाती कदम उठा लिया। बताया गया है कि चुनावी नतीजे घोषित होने के अगले दिन देर रात जहरीला पदार्थ निगलने के बाद अस्पताल ले जाए गए प्रत्याशी की इलाज के दौरान मौत हो गई।

 लेलू प्रथम से लड़ा था लक्ष्मण ने क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव, मिले महज 15 वोट….

अभी तक मिल रही जानकारी के मुताबिक मूल रूप से राज्य के पिथौरागढ़ जिले विण ब्लॉक के लेलू ग्राम पंचायत के तोक सन गांव निवासी लक्ष्मण गिरी उर्फ एलजी बाबा ने लेलू प्रथम क्षेत्र पंचायत सीट से इस बार बीडीसी (ब्लॉक डेवलपमेंट कमेटी) सदस्य पद के लिए चुनावी रणभूमि में उतरे थे। बीते 31 जुलाई को मतगणना में उन्हें मात्र 15 वोट प्राप्त हुए, और वे पांचवे नंबर पर रहे। स्थानीय लोगों के मुताबिक परिणामों के बाद वे तनाव में दिख रहे थे, लेकिन किसी को यह अंदाजा नहीं था कि वे इतना बड़ा कदम उठा लेंगे।

वड्डा में चाय की दुकान चलाते थे लक्ष्मण, सीमित संसाधनों से लड़ा था पंचायत चुनाव 

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परिजनों के अनुसार देर शाम लक्ष्मण ने अपने घर पर कोई विषाक्त पदार्थ खा लिया। जब उनकी तबीयत बिगड़ने लगी, तो परिजन उन्हें गंभीर हालत में रात करीब दस बजे जिला अस्पताल लेकर पहुंचे। जहां उपचार के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया। लक्ष्मण, पिथौरागढ़ जिले के ही वड्डा क्षेत्र में एक छोटी चाय दुकान चला कर जीवन यापन करते थे। उन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद बीडीसी सीट से चुनाव लड़ने का साहसिक निर्णय लिया था, लेकिन हार ने उन्हें भीतर से तोड़ दिया।

पहले भी कर चुके थे लक्ष्मण आत्महत्या का प्रयास

ग्रामीणों के अनुसार, लक्ष्मण पूर्व में भी आत्महत्या का प्रयास कर चुके थे। अब यह कहना मुश्किल है कि चुनाव में हार ही उनकी मौत की मुख्य वजह थी या इसके पीछे कोई गंभीर पारिवारिक विवाद भी कारण बना। स्थानीय चर्चाओं में पारिवारिक तनाव की बातें भी सामने आ रही हैं, लेकिन कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

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यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी है, बल्कि उस सामाजिक मानसिकता पर भी सवाल उठाती है जिसमें चुनावी हार को अपमान की तरह लिया जाता है। हार-जीत लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन मानसिक दबाव और सामाजिक अपेक्षाएं व्यक्ति को किस हद तक तोड़ सकती हैं, यह मामला उसका जीता-जागता उदाहरण बन गया है।

 

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