अहल-ए-सुख़न बज़्म की ओर से आयोजित नशिस्त में शायरों ने पेश कीं खूबसूरत रचनाएँ।
देहरादून —: स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में अहल-ए-सुख़न बज़्म की ओर से एक शेरी नशिस्त का आयोजन हुआ..
इस नशिस्त के मेज़बान और सरपरस्त रहे जनाब इक़बाल आज़र।
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अहल-ए-सुख़न बज़्म के संस्थापक शाइर राज कुमार ‘राज’ ने इस महफ़िल का संचालन किया। इस महफ़िल में शादाब मशहदी, बदरुद्दीन ज़िया, दर्द गढ़वाली, कुमार विजय द्रोणी, नरेंद्र शर्मा, कविता बिष्ट, राज कुमार ‘राज’, राही नेटहौरी, इम्तियाज़ क़ुरैशी, हरेंद्र माँझा व अमन रतूड़ी जैसे शाइरों की शिरकत रही।
कार्यक्रम वीर जवानों के त्याग और बलिदान को नम्न करते हुए आगे बढ़ा।
शाइरों व कवियों ने देश भक्ति, क़ौमी एकता, प्रेम जैसे विषयों पर बहुत ख़ूबसूरत रचनायें पेश कीं।
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- “मैंने सब कुछ कह दिया आँखों में आँखें डाल कर
तुम भी कुछ बोलो ज़रा आँखों में आँखें डाल कर”
~इक़बाल आज़र
- “आप क्या हैं मुझे पता भी है
और मिरे पास आईना भी है।
~बदरुद्दीन ज़िया
- “सारे ही आस्तीन में घुट-घुट के मर गये
मैंने किसी को ज़िंदा निकलने नहीं दिया “
~ शादाब मशहदी
- “हवन करते हुए दामन जला है,
हमारे साथ ये अक्सर हुआ है”
-दर्द गढ़वाली
- “ज़माना हमको भी नफ़रत से जोड़ देता है
मोहब्बतों की कहानी में हम निकलते हैं”
-इम्तियाज़ क़ुरैशी
- “गर्दनें कट रही हैं यार यहाँ
तुम बचाते रहो दस्तार यहाँ”
-राज कुमार ‘राज’ ( संस्थापक अहल-ए-सुख़न )
- “बहारों की तरह सजती हुई उपहार है कविता” – कविता बिष्ट
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कार्यक्रम की रूप-रेखा तैयार करने में जनाब इक़बाल आज़र, राज कुमार ‘राज’, इम्तियाज़ क़ुरैशी, दर्द गढ़वाली, हरेन्द्र माँझा व अमन रतूड़ी का विशेष योगदान रहा.
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