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सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) बना बड़ी तबाही का कारण -

सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) बना बड़ी तबाही का कारण

भूवैज्ञानिकों ने चेताया—MCT ज़ोन में चट्टानें कमजोर, झील निर्माण और भूस्खलन का बढ़ता खतरा; बड़े निर्माण कार्य पर रोक लगाने की सिफारिश।

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देहरादून —: उत्तरकाशी आपदा को लेकर अब भूवैज्ञानिकों ने गंभीर चेतावनी दी है। उत्तराखंड के वरिष्ठ भूवैज्ञानिक प्रोफेसर एम.पी.एस. बिष्ट के अनुसार, मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) का प्रभाव उत्तरकाशी की आपदाओं में अहम भूमिका निभाता है। यह भू-वैज्ञानिक फॉल्ट ज़ोन अंदरूनी घर्षण के कारण चट्टानों को कमजोर करता है।

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जिसके चलते भारी बारिश या असामान्य दबाव पड़ने पर क्षेत्र अचानक ढह जाता है और बड़ी आपदाओं को जन्म देता है।

स्याणा छत्ती और धाराली की घटनाएँ

हाल ही में स्याणा छत्ती क्षेत्र में कुपड़ा गाड़ का मलबा यमुना नदी में भर गया, जिससे नदी का प्रवाह रुक गया और झील बनने जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। इससे पहले धाराली और हर्षिल के बीच भागीरथी नदी में भी इसी तरह झील का निर्माण हुआ था। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाएँ MCT ज़ोन में आम हैं और बार-बार आपदाओं का खतरा बढ़ाती हैं।

ऐतिहासिक उदाहरण

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प्रो. बिष्ट ने बताया कि 1893 और 1970 में भी इसी तरह की भू-संरचनात्मक अस्थिरता ने बड़ी आपदाएँ पैदा की थीं। इन घटनाओं से सबक लेते हुए अब इस ज़ोन में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य को पूरी तरह प्रतिबंधित करना चाहिए।

आपदा का वास्तविक कारण

हालांकि ताज़ा आपदा को लेकर विशेषज्ञ मानते हैं कि यह केवल बादल फटने का नतीजा नहीं था, बल्कि इसके पीछे हिमनद (ग्लेशियर) का टूटना, ग्लेशियर झील का फटना (GLOF) या ऊँचाई पर ग्लेशियर का अलग होना जैसी घटनाएँ भी हो सकती हैं।

जलवायु और मानवीय दबाव

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उत्तराखंड का भू-भाग पहले से ही बेहद संवेदनशील है। पिछले एक दशक में यहाँ 700 से अधिक लोग जलवायु आधारित आपदाओं की भेंट चढ़ चुके हैं। ऐसे में बेतरतीब निर्माण, सड़कों की कटाई और पर्यटन दबाव ने स्थिति और भी खतरनाक बना दी है।

विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तरकाशी सहित पूरे गढ़वाल क्षेत्र में MCT ज़ोन पर निगरानी और वैज्ञानिक अध्ययन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि भविष्य की आपदाओं से जान-माल के बड़े नुकसान को टाला जा सके।

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