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नंदानगर ख़तरे की चपेट में – सात मकान ध्वस्त -

नंदानगर ख़तरे की चपेट में – सात मकान ध्वस्त

नंदा नगर में बढ़ा भू-धंसाव, सात भवन ध्वस्त, 16 खतरे में।

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चमोली —: ज़िले के नंदा नगर क्षेत्र में भू-धंसाव की स्थिति लगातार भयावह होती जा रही है। ताज़ा हालात में सात भवन पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं जबकि 16 भवनों पर खतरा मंडरा रहा है। ज़मीन के भीतर से लगातार पानी निकल रहा है जिससे दरारें और चौड़ी हो रही हैं।

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पानी का रिसाव और निकासी

बंद बाज़ार और लक्ष्मी मार्केट क्षेत्र में धरती से पानी निकलना सबसे बड़ी चिंता बन गया है। जल संस्थान और तहसील प्रशासन ने पानी की निकासी के लिए करीब 400 मीटर लंबा पाइप लगाया है। वर्तमान में लगभग दो इंच व्यास का साफ पानी बह रहा है।

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प्रभावित परिवारों का विस्थापन

भू-धंसाव से प्रभावित कुंवर कॉलोनी के नरेंद्र सिंह और गोविंद सिंह के मकानों में रहने वाले परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट कर दिया गया है। पहले तो प्रशासन ने दो बारात घरों को राहत शिविर में तब्दील किया, लेकिन रहने की उचित व्यवस्था न होने के कारण 18 परिवार अब किराए के मकानों में रह रहे हैं। वहीं, पर्यावरण मित्रों को राहत केंद्रों में रखा गया है। प्रभावित परिवारों को तिरपाल, टीन की चादरें और पशुओं के लिए चारा उपलब्ध कराया गया है।

प्रशासन की सक्रियता

एसपी सर्वेश पंवार और सीओ मदन सिंह बिष्ट ने प्रभावित इलाकों का दौरा कर हालात का जायज़ा लिया। उन्होंने पुलिस बल को खतरनाक क्षेत्रों में जाने से रोकने और भारी बारिश की स्थिति में अलर्ट रहने के निर्देश दिए हैं।

मुआवज़ा और पुनर्वास योजना

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थराली विधायक भूपाल राम तंवर ने कहा कि प्रभावितों को वही मुआवज़ा मिलेगा जो थराली में दिया गया था, यानी प्रति परिवार 5 लाख रुपये। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री से बात हो चुकी है और फिलहाल प्राथमिकता लोगों को सुरक्षित स्थान पर बसाना और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना है।

तीन सालों से बढ़ती घटनाएँ

पिछले तीन वर्षों में चमोली ज़िले में भू-धंसाव की घटनाएँ तेज़ी से बढ़ी हैं। पहले कर्णप्रयाग, फिर जोशीमठ और अब नंदा नगर इस संकट से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञ इसे गंभीर भू-वैज्ञानिक संकेत मान रहे हैं और स्थानीय लोग वैज्ञानिक सर्वे और दीर्घकालिक योजना की मांग कर रहे हैं।

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नंदा नगर की स्थिति यह साफ़ दिखा रही है कि चमोली लगातार भू-धंसाव के बड़े संकट की ओर बढ़ रहा है। अब ज़रूरत है कि प्रभावितों को सुरक्षित जगह पुनर्वासित करने के साथ-साथ वैज्ञानिक अध्ययन और ठोस नीतिगत कदम उठाए जाएं।

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