कारटोसेट सैटेलाइट चित्रों के विश्लेषण में सामने आया एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तबाही, बादलों के पार देखने वाली तकनीक से होगी मुख्य कारणों की पहचान।
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उत्तरकाशी -: धराली में आई जलप्रलय के कारणों और उसके वास्तविक प्रभाव का पता लगाने के लिए देशभर के वैज्ञानिक सैटेलाइट चित्रों का गहन विश्लेषण कर रहे हैं। उनका लक्ष्य यह जानना है कि खीर गंगा के ऊपर श्रीकंठ पर्वत की चोटियों के आसपास जलग्रहण क्षेत्र में ऐसी कौन-सी परिस्थिति बनी, जिसने इतनी बड़ी आपदा को जन्म दिया।
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इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (हैदराबाद) ने कारटोसेट सैटेलाइट से प्राप्त दो चित्र जारी किए हैं—एक आपदा से पहले 13 जून का और दूसरा आपदा के बाद 7 अगस्त का। इन चित्रों का विश्लेषण उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के पूर्व निदेशक और एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. एम.पी.एस. बिष्ट ने किया है।
प्रो. बिष्ट के अनुसार, ऊपरी क्षेत्रों में बादलों के कारण स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाई है, लेकिन निचले इलाकों में तबाही का पैमाना साफ दिख रहा है। सैटेलाइट विश्लेषण से पता चला है कि जलप्रलय ने धराली के करीब एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अपनी चपेट में लिया है।
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इस क्षेत्र में भारी मात्रा में मलबा भर गया है और लगभग 200 भवन सीधे प्रभावित हुए हैं, जिनमें सेना का एक प्रतिष्ठान भी शामिल है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े क्षेत्र का प्रभावित होना यह दर्शाता है कि जलप्रलय का वेग अत्यधिक था और इसने अनुमान से कहीं ज्यादा विनाश किया। फिलहाल यह संभावना जताई जा रही है कि बादल फटने के अलावा ऊपरी क्षेत्र में कोई अन्य प्राकृतिक घटना भी हुई हो सकती है।
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नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर शुक्रवार को बादलों के पार देखने की क्षमता वाली विशेष सैटेलाइट तकनीक से प्राप्त चित्र जारी करेगा। इससे आपदा की असली वजह और अधिक स्पष्ट होने की उम्मीद है।
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